भोजन मंत्र

ॐ ब्रहमार्पणं ब्रहमहविर्‌ब्रहमाग्नौ ब्रहमणा हुतम् ।

ब्रहमैव तेन गन्तव्यं ब्रहमकर्मसमाधिना ॥

 सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु ।

सह वीर्यं करवावहै ।

तेजस्विनावधीतमस्तु ।

मा विद्‌विषावहै ॥

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:: ॥

प्रातः स्मरण मंत्र

प्रात: कर-दर्शनम्-

कराग्रे वसते लक्ष्मी:, करमध्ये सरस्वती ।

कर मूले तु गोविन्द:, प्रभाते करदर्शनम ॥१॥

पृथ्वी क्षमा प्रार्थना- समुद्रवसने देवि ! पर्वतस्तनमंड्ले ।

विष्णुपत्नि! नमस्तुभ्यं पाद्स्पर्श्म क्षमस्वे ॥२॥

ब्रह्मा मुरारीस्त्रिपुरांतकारी

भानु: शाशी भूमिसुतो बुधश्च ।

गुरुश्च शुक्र: शनि-राहु-केतवः

कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम ॥३॥

सनत्कुमार: सनक: सन्दन:

सनात्नोप्याsसुरिपिंलग्लौ च ।

सप्त स्वरा: सप्त रसातलनि

कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम ॥४॥

सप्तार्णवा: सप्त कुलाचलाश्च

सप्तर्षयो द्वीपवनानि सप्त

कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम ॥५॥

पृथ्वी सगंधा सरसास्तापथाप:

स्पर्शी च वायु ज्वर्लनम च तेज:

नभ: सशब्दम महता सहैव

कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम ॥६॥

 प्रातः स्मरणमेतद यो विदित्वाssदरत: पठेत।

स सम्यग धर्मनिष्ठ: स्यात् संस्मृताsअखंड भारत: ॥७॥

भावार्थ: हाथ के अग्र भाग में लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती तथा मूल में गोविन्द (परमात्मा ) का वास होता है। प्रातः काल में (पुरुषार्थ के प्रतीक) हाथों का दर्शन करें ॥१॥ पृथ्वी क्षमा प्रार्थना: भूमि पर चरण रखते समय जरूर स्मरण करें.. समुद्ररूपी वस्त्रोवाली, जिसने पर्वतों को धारण किया हुआ है और विष्णु भगवान की पत्नी हे पृथ्वी देवी ! तुम्हे नमस्कार करता हूँ ! तुम्हे मेरे पैरों का स्पर्श होता है इसलिए क्षमायाचना करता हूँ ॥२॥ है ब्रह्मा, विष्णु (राक्षस मुरा के दुश्मन, श्रीकृष्ण या विष्णु) , शिव (त्रिपुरासुर का अंत करने वाला, श्री शिव), सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु सभी देवता मेरे दिन को मंगलमय करें ॥३॥